अधर-रस मुरली लूटन लागी। जा रस कौं षट रितु तप कीन्हौ, सो रस पियति सभागी। कहाँ रही, कहँ तैं इहँ आई, कौनैं याहि बुलाई? चक्रित भई कहतिं ब्रजवासिनि, यह तौ भली न आई। सावधान क्यौं होति नहीं तुम, उपजी बुरी बुलाइ। सूरदास-प्रभु हम पर ताकौं, कीन्हौ सौति बजाइ।।
हिंदी समय में सूरदास की रचनाएँ